
वर्तमान में दिल्ली में लगभग ४३ दिनों से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सोशल मंचों पर कई पुरानी तस्वीरें व वीडियो को भ्रामक रूप से वायरल किया जा रहा है। ऐसे कई तस्वीरों व वीडियो की सच्चाई फैक्ट क्रेसेंडो आप तक पहुँचाता चला आ रहा है। इन दिनों इंटरनेट पर एक तस्वीर काफी वायरल हो रही है, उस तस्वीर में आप एक सिख पुरुष को हाथ में पोस्टर पकडे हुए देख सकते है। उस पोस्टर में अंग्रेज़ी में लिखा है,
“सभी मुख्यधारा व प्रो- स्वतंत्रता कश्मीरी नेताओं को रिहा करें।“
इस तस्वीर के साथ जो दावा वायरल हो रहा है उसके मुताबिक किसान आंदोलन में किसान कश्मीरी नेताओं की रिहाई की मांग कर रहें है।
वायरल हो रही तस्वीर के शीर्षक में अंग्रेज़ी में लिखा है,
“ये सब किसान आंदोलन में क्यों?”
अनुसंधान से पता चलता है कि…
फैक्ट क्रेसेंडो ने जाँच के दौरान पाया कि वायरल हो रही तस्वीर 2019 के मानव अधिकार दिवस पर कुछ सिख दलों द्वारा कश्मीर से संबंधित सरकारी नीतियों के खिलाफ़ किये गए विरोध के दौरान खींची गयी थी, इस तस्वीर का वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन से कोई संबन्ध नहीं है।
जाँच की शुरुवात हमने वायरल हो रही तस्वीर को गूगल रीवर्स इमेज सर्च कर की, परिणाम में हमें सिख सियासत न्यूज़ नामक एक वैबसाइट पर एक समाचार लेख में यही तस्वीर प्रकाशित की हुई मिली। यह समाचार लेख 14 मार्च 2020 को प्रकाशित किया गया था। इस लेख में दल खालसा व अन्य सिख दलों द्वारा कश्मीर के लोगों की स्वतंत्रता व कश्मीरी नेताओं की रिहाई के लिए आवाज़ उठाई गयी थी। लेख में यह भी लिखा है कि दल खालसा के मुताबिक जम्मू और कश्मीर को मोदी सरकार ने एक खुले जेल की तरह बना दिया है जिसमें आए दिन लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
दल खालसा के सचिव कंवर पाल सिंह के मुताबिक भारत सरकार ने विदेशी गणमान्य व्यक्तियों/मीडिया को भारतीय अधिकारियों की चौकस निगाहों के नीचे जम्मू और कश्मीर के चुनिंदा भाग ही दिखाए है. जिससे उन्हें कश्मीर की स्थिति सामान्य लगे। उन्होंने यह भी कहा कि, स्वतंत्र एजेंसियों और पर्यवेक्षकों जैसे एमनेस्टी, ह्यूमन राइट्स वॉच और यू.एन.एच.आर.सी को अशांत घाटी का दौरा करने और जमीनी स्थिति का आंकलन करने और इसकी “बंदी” आबादी के साथ बातचीत करने के लिए रोक दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब से उनके प्रतिनिधिमंडल को कठुआ में रोक दिया गया और 10 दिसंबर 2019 को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाने के लिए श्रीनगर जाने की अनुमति नहीं दी गई थी।
इसके पश्चात हमने सिख सियासत न्यूज़ के संपादक परमजीत सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने हमें बाताया कि, “वायरल हो रही तस्वीर हमें एक सिख ग्रुप द्वारा भेजी गयी थी। उन्हें जम्मू और कश्मीर में जाने से रोका गया था, क्योंकि वे कश्मीरी नेताओं की रिहाई की मांग कर रहे थे। यह तस्वीर 9 दिसंबर 2019 को मानव अधिकार दिवस पर खींची गयी थी, जिसे हमने बाद में एक उचित समाचार लेख में इस्तेमाल की थी। वायरल हो रही तस्वीर पुरानी है और इसके वर्तमान में दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन से कोई संबन्ध नहीं है।“
इसके पश्चात उन्होंने हमें परमजीत सिंह ने वे दो ई- मेल भी उपलब्ध कराएं जो उन्हें दल खालसा के सचिव कंवर पाल सिंह ने भेजे थे। उन दोनों ई- मेल में उपरोक्त दी गयी जानकारी दी हुई है जिसे बाद में सिख सियासत ने अपने बैवसाइट पर प्रकाशित की थी।
इन ई- मेल के साथ हमें उस दिन के आंदोलन के और भी तस्वीरें उपलब्द कराई गयी।
तदनंतर गूगल पर कीवर्ड सर्च करने पर हमें वायरल हो रही तस्वीर में दिख रहा शख्स जम्मू लिंकज़ न्यूज़ नामक एक वैबसाइट पर एक तस्वीर प्रकाशित की गयी है, उसमें आप देख सकते है।
जम्मू लिंकज़ न्यूज़ ने अपने आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर उपरोक्त आंदोलन का वीडियो 9 दिसंबर 2019 को प्रसारित किया हुआ है।
निष्कर्ष: तथ्यों की जाँच के पश्चात हमने पाया है कि उपरोक्त दावा में गलत है। वायरल हो रही तस्वीर 2019 में खींची गयी थी, जब दल खालसा व शिरोमणी अकाली दल के कार्यकर्ता मानव अधिकार दिवस पर कश्मीर के लोगों की स्वतंत्रता व उनके नेताओं की रिहाई के लिए आवाज़ उठा रहे थे। इस तस्वीर का वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन से कोई संबन्ध नहीं है।
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Title:2019 में कुछ सिख दलों द्वारा मानव अधिकार दिवस पर किये गए विरोध की तस्वीरों को वर्तमान किसान आंदोलन से जोड़ा जा रहा है।
Fact Check By: Rashi JainResult: False
