वायरल तस्वीरों में दिख रहे नतीजे 2016 के चुनाव के दौरान एबीपी न्यूज़ द्वारा किए गए सर्वे के है।

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) विधानसभा चुनाव (Assembly elections) के चलते सोशल मंचों पर इससे संबन्धित कई तस्वीरें व वीडियो गलत दावे के साथ साझा किए जा रहा है। फैक्ट क्रेसेंडो ने ऐसे कई तस्वीरों व वीडियो का अनुसंधान कर उनकी सच्चाई अपने पाठकों तक पहुंचाई है।

ऐसे ही एक वायरल पोस्ट में एबीपी न्यूज़ के चूनावी सर्वे के स्क्रीनशॉट शेयर किए जा रहे हैं। उनमें आप अलग- अलग राजनीतिक दलों (Political Parties) के सीटों के आंकड़े देख सकते है। इस तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि एबीपी न्यूज के सर्वे में आने वाले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की बात कही है।

वायरल हो रहे पोस्ट में दी गयी जानकारी में लिखा है, “2022 का सबसे बड़ा सर्वे बहन की सरकार आने वाली है।”

(शब्दश:)

फेसबुक

आर्काइव लिंक

अनुसंधान से पता चलता है कि...

यूट्यूब पर कीवर्ड सर्च करने से हमें 16 मार्च 2016 में एबीपी न्यूज़ द्वारा प्रसारित किया गया एक वीडियो मिला। इस वीडियो में एबीपी न्यूज द्वारा उस साल यानी 2016 में किए गए सर्वे के नतीजे दिखाये गए है।

आप इस वीडियो में 1.02 मिनट से आगे सर्वे के आंकड़े देख सकते है। वायरल हो रहे पोस्ट में जो चार तस्वीरें दिख रही है, वे चारों तस्वीरें आपको इस वीडियो में देखने को मिलेगी। इससे हम यह कह सकते है कि जो स्क्रीनशॉट वायरल हो रहे हैं वे पांच साल पुराने है।

आर्काइव लिंक

इस वर्ष एबीपी द्वारा किए गए सर्वे के क्या नतीजे आए?

फिर हमने गूगल पर कीवर्ड सर्च किया तो हमें एबीपी न्यूज़ द्वारा 11 दिसंबर को किए सर्वे का वीडियो मिला। उसमें वर्ष 2022 में होने पांचों भी राज्यों का सर्वे बताया गया है। इस सर्वे में 220-230 सीटों के साथ बीजेपी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाएगी ऐसा बताया गया है।

आर्काइव लिंक

निष्कर्ष: तथ्यों की जाँच के पश्चात हमने पाया कि वायरल हो रही तस्वीर के साथ किया गया दावा गलत है। तस्वीर में दिख रहे स्क्रीनशॉट पांच साल पहले 2016 में एबीपी द्वारा किए गए सर्वे के हैं। एबीपी के लेटेस्ट सर्वे में भाजपा की जीत होगी ऐसा नतीजा आया है।

Avatar

Title:क्या ABP न्यूज के सर्वे में उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनने की बात कही है? जानिये सच...

Fact Check By: Rashi Jain

Result: False