वर्तमान में देश में अलग-अलग जगहों पर कृषि विधेयक (२०२०) को लेकर हो रहे किसान आंदोलन के चलते, सोशल मंचो पर कई वीडियो, तस्वीरें व संदेश वाईरल होते चले आ रहे है। फैक्ट क्रेसेंडो ने पहले भी किसान आंदोलन के संबन्ध में वाईरल खबरों की सच्चाई आप तक पहुँचाई है। वर्तमान में सोशल मंचों पर एक वीडियो व तीन तस्वीरों का संकलन वाईरल हो रहा है। पोस्ट के साथ जो दावा वायरल हो रहा है उसके मुताबिक ये वीडियो व तस्वीरें वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन से संबन्धित है। पोस्ट के शीर्षक में लिखा है,
“पानीपत में उमड़ा किसानों का ये सैलाब बता रहा है, भाजपा के अंतिम विसर्जन का समय आ चुका है। कुछ ही समय मे हम दिल्ली की ओर कूच करेंगे, जितना जोर है सरकार लगा ले, हम रुकेंगे नहीं। #standwithfarmerschallenge”
इस पोस्ट को सोशल मंचों पर काफी तेजी से साझा किया जा रहा है।
अनुसंधान से पता चलता है कि…
वायरल हो रहे पोस्ट में एक वीडियो व तीन तस्वीरों का संकलन होने के कारण हमने चारों की जाँच अलग – अलग की।
उपरोक्त वीडियो की जाँच हमने इनवीड टूल के माध्यम से रीवर्स इमेज सर्च के ज़रिये की, तो हमें कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर यह वीडियो पोस्ट किया हुआ मिला। इस वीडियो को 21 फरवरी 2019 को ट्वीट किया गया था। ट्वीट के साथ जो शीर्षक है उसमें लिखा है,
“#KisanLongMarch पुलिस द्वारा अनुमति देने से इनकार करने के बावजूद नासिक से मुंबई की ओर जा रहा है। #KisanMarchesAgain #BJPBetraysKisans”
इससे हम यह अनुमान लगा सकते है कि वाईरल हो रहा वीडियो वर्तमान का नहीं बल्कि 2019 का है। जाँच के दौरान हमें कई समाचार लेख मिले जिनमें 2019 में महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन की जानकारी प्रकाशित की गई थी।
इस वीडियो से संबंधित और जानकारी हासिल करने के लिए व इसकी सच्चाई पता लगाने के लिए हमने सी.पी.आई (एम) के नेता व अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढ़वले से संपर्क किया तो उन्होंने हमें बताया कि
“वायरल हो रहा वीडियो 2019 में हुए किसान मार्च का है। असल में उस मार्च के चलते किसानों ने नाशिक से मुंबई तक जाने का तय किया था परंतु वह मार्च नाशिक से 35-40 किलोमीटर पर ही बर्खास्त कर दिया गया था, इसका कारण यह था कि महाराष्ट्र के कृषि मंत्री गिरीश महाजन ने खुद आंदोलन के स्थान पर जाकर किसानों की मांगों पर लिखित मंज़ूरी दे दी थी। दरअसल किसान मार्च 2018 में भी हुआ था। किसानों की कुल मिलाकर चार मांगे थी जैसे किसानों के लिए कर्ज माफी, उत्पादन लागत का 1.5 गुना एम.एस.पी, वन जनजाति अधिनियम लागू करना, सूखा राहत आदि। ये किसान मार्च हमारे नेतृत्व में हुए है।“
हमारे द्वारा इस तस्वीर की जाँच यांडेक्स रीवर्स इमेज सर्च के ज़रिये करने पर, हमें कई समाचार लेख मिले जिनमें वायरल हो रही इस तस्वीर के अलग-अलग ऐंगल से खिंची हुई तस्वीरों को प्रकाशित किया गया था। जो तस्वीर वाईरल हो रही है उस तस्वीर को मार्च 2018 में यौर स्टोरी नामक एक वैबसाइट के एक समाचार लेख में प्रकाशित किया गया है। इस तस्वीर को सुजेश के नामक एक फोटोग्राफर ने खींचा था। इस तस्वीर के संबन्ध में जो जानकारी दी हुई है उसमें लिखा है,
“भूमिहीन और आदिवासी किसानों ने मुंबई के आज़ाद मैदान तक 180 किलोमीटर की दूरी तय की, जिससे भारत में कृषि समुदाय के संकट और क्षेत्र के कट्टरपंथी बदलाव की जरूरत पर प्रकाश डाला गया है।“
इस तस्वीर को कई अन्य कई समाचार पत्रों ने प्रकाशित किया था।
उपरोक्त तस्वीर की जाँच हमने गूगल रीवर्स इमेज सर्च के माध्यम से की, तो हमें एक फेसबुक पोस्ट मिला जिसमें इस तस्वीर को साझा किया गया है। वह फेसबुक पोस्ट सितंबर 2017 में पोस्ट किया हुआ है। इस पोस्ट के साथ जो शीर्षक है उसमें लिखा है,
“ये भीङ सीकर में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के शव यात्रा की है। सरकार की अर्थी बंध चुकी हैं और कंधे भी तैयार हो चुके हैं। युवा शक्ति 2018 का इंतजार कर रही हैं। पूरा राजस्थान महारानी के कुराज से तंग आ चुका है।
उपरोक्त फेसबुक पोस्ट के शीर्षक को ध्यान में रखते हुए हमने कीवर्ड सर्च के माध्यम से जाँच की तो हमें यही तस्वीर विकीपिडिया पर प्रकाशित मिली। उस तस्वीर से संबन्धित एक अनुच्छेद प्रकाशित किया हुआ है जिसमें लिखा है,
“अखिल भारतीय किसान सभा (ए.आई.के.एस) के नेतृत्व में किसान ऋण माफी, न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य मांगों को बढ़ावा देने के लिए 1 सितंबर 2017 को राजस्थान में एक बड़े किसान आंदोलन की शुरूवात हुई। किसान सभा के अध्यक्ष अमरा राम, पूर्व विधायक पेमाराम, हेतराम बेनवाल, पवन दुग्गल, मंगल सिमग यादव, भागीरथ नेतर, सागर मल खाचरिया और अन्य लोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। सीकर आंदोलन का केंद्र था इसलिए इस आंदोलन को“सीकर किसान आंदोलन”के नाम से जाना जाता है। हज़ारों किसान सीकर मंडी में इकट्ठा हुए थे।“
इसके पश्चात हमें कीवर्ड सर्च के ज़रिये इस तस्वीर से संबंधित और पुख्ता सबूत पाने की कोशिश की तो हमें द लॉजिकल इंडिया द्वारा प्रसारित एक समाचार लेख मिला जिसमें वायरल हो रही इस तस्वीर को प्रकाशित किया गया है। इस समाचार लेख में भी 2017 में सीकर में हुए किसान आंदोलन की जानकारी दी हुई है। आपको यह बता दें कि द लॉजिकल इंडिया का यह समाचार लेख 13 सितंबर 2017 को प्रकाशित किया हुआ है।
उपरोक्त तस्वीरों का अनुसंधान हमने अलग-अलग किया है।
उपरोक्त तस्वीर की जाँच हमने गूगल रीवर्स इमेज सर्च के ज़रिये की तो हमें कई समाचार लेख मिले जिनके मुताबिक यह तस्वीर 2018 की है जब महाराष्ट्र में हज़ारों की तादात में किसान आंदोलन के तौर पर मुंबई गये थे। तस्वीर में दिख रही वृद्ध महिला के जैसे ऐसे कई किसान थे जिनके पैर पैदल चलने की वजह से छिल गए थे।
इस तस्वीर को कई समाचार लेखों में प्रकाशित किया था।
इस तस्वीर को समाचार लेखों द्वारा प्रतिनिधित्व के तौर पर महाराष्ट्र में सालों से पड़ रहे सूखे को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया था।
उपरोक्त तस्वीर को किसानों की बुरी व्यथा दर्शाने के लिए समाचार पत्रों द्वारा प्रतिनिधित्व के लिए इस्तेमाल किया गया था।
लोकमत द्वारा इस तस्वीर को महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई बेमौसम वर्षा के कारण फसलों के नुकसान से किसानों की परेशानी को दर्शाने के लिए प्रतिनिधित्व तस्वीर के रूप में छापा गया था ।
उपरोक्त तस्वीर को भी किसानो की बुरी व्यथा को दर्शाने के लिए समाचार पत्रों द्वारा प्रतिनिधित्व के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है।
उपरोक्त दिख रही तस्वीर प्रतिनिधित्व तस्वीर है जिसे किसानों से संबन्ध रख रहे किसी भी लेख के साथ इस्तेमाल किया जाता रहा है।
निष्कर्ष: तथ्यों की जाँच के पश्चात हमने उपरोक्त दावे को गलत पाया है। वाईरल हो रहा वीडियो व तस्वीरों के संकलन का वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन से कोई संबन्ध नहीं है, और न ही ये प्रकरण हरियाणा के पानीपत से है ।
Title:वायरल हो रहे वीडियो व तस्वीर वर्तमान में हो रहे किसान आंदोलन की नहीं है।
Fact Check By: Rashi JainResult: False
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